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ध्वन्यात्मक शब्द meaning in Hindi

[ dhevneyaatemk shebd ] sound:
ध्वन्यात्मक शब्द sentence in Hindi

Meaning

संज्ञा
  1. वह जो सुनाई दे:"एक तीव्र ध्वनि ने उसकी एकाग्रता को भंग कर दिया"
    synonyms:ध्वनि, आवाज़, आवाज, शब्द, रव, स्वर, स्वन, नाद, निनाद, अभिरुत, ध्वान, आरव, नदनु, विश्वकद्रु, ह्रद, निध्वान, वाज, अवाज, अवाज़, आरो

Examples

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  1. तुलसी बाबा की ध्वन्यात्मक शब्द योजना ने निराला के किशोर मन पर कैसा असर डाला होगा , यह सहज ही समझा जा सकता है।
  2. इस सम्पर्क से मणिपुरी और हिन्दी भाषा को जो प्रतीक , मुहावरे , कहावतें , विशिष्ट ध्वन्यात्मक शब्द , आलोचना सम्बन्धी पारिभाषिक शब्द , सांस्कृतिक शब्द , ललित और उपयोगी कलाओं से जुडे़ शब्द मिले है , वे संख्या में कम भले ही हो , किन्तु महत्व की दृृष्टि से कम नहीं हैं।
  3. छटवें अध्याय में शब्द संपदा शीर्षक के अन्तर्गत शब्द-युग्म , पर्यायवाची शब्द, अनेकार्थी शब्द, विलोम शब्द, दैनिक बोलचाल में प्रयुक्त होने वाले शब्द, शब्द-परिवार, ध्वन्यात्मक शब्द, पानी, पत्थर, लकड़ी, तंत्र-मंत्र, शरीर, अनाज, फल, सब्जी, गांव के स्थान के नाम, गंध, स्वाद, स्पर्श-बोधक शब्द आदि, देकर पुस्तक को अधिक व्यवहारिक बनाने का सफल प्रयास किया गया है।
  4. अग्नि को दूसरों का प्रहार सहन करने वाला , जल में स्थित ब्रह्म को नामधारी जीवात्मा , प्रतिबिम्ब को प्रतिरूप , प्रतिध्वनि को गति का अभावयुक्त , ध्वन्यात्मक शब्द को प्राणस्वरूप शरीर की छाया को मृत्यु-रूप , शरीर में स्थित विराट पुरुष को प्रजापति का स्वरूप , प्रज्ञा से युक्त आत्मा को यम का स्वरूप , दाहिने नेत्र में स्थित पुरुष को नाम , अग्नि और ज्योति की आत्मा , बाएं नेत्र में स्थित पुरुष को सत् य.
  5. अग्नि को दूसरों का प्रहार सहन करने वाला , जल में स्थित ब्रह्म को नामधारी जीवात्मा , प्रतिबिम्ब को प्रतिरूप , प्रतिध्वनि को गति का अभावयुक्त , ध्वन्यात्मक शब्द को प्राणस्वरूप शरीर की छाया को मृत्यु-रूप , शरीर में स्थित विराट पुरुष को प्रजापति का स्वरूप , प्रज्ञा से युक्त आत्मा को यम का स्वरूप , दाहिने नेत्र में स्थित पुरुष को नाम , अग्नि और ज्योति की आत्मा , बाएं नेत्र में स्थित पुरुष को सत् य.
  6. उसके बाद ऋषि ने अग्नि मण्डल में स्थित विराट पुरुष को , जलमण्डल में उपस्थित विराट पुरुष को, दर्पण में प्रतिबिम्बित विराट पुरुष को, प्रतिध्वनि में स्थित ध्वनि को, गतिशील विराट पुरुष के पीछे उठने वाले ध्वन्यात्मक शब्द को, शरीरधारी की छाया को, शरीर में स्थित विराट पुरुष को, प्रज्ञा से युक्त प्राण-स्वरूप आत्मा को, दाहिने नेत्र में स्थित विराट पुरुष को, बाएं नेत्र में स्थित विराट पुरुष को अविनाशी ब्रह्म के रूप में उपस्थित करके, उसकी उपासना करने की बात कही।
  7. उसके बाद ऋषि ने अग्नि मण्डल में स्थित विराट पुरुष को , जलमण्डल में उपस्थित विराट पुरुष को, दर्पण में प्रतिबिम्बित विराट पुरुष को, प्रतिध्वनि में स्थित ध्वनि को, गतिशील विराट पुरुष के पीछे उठने वाले ध्वन्यात्मक शब्द को, शरीरधारी की छाया को, शरीर में स्थित विराट पुरुष को, प्रज्ञा से युक्त प्राण-स्वरूप आत्मा को, दाहिने नेत्र में स्थित विराट पुरुष को, बाएं नेत्र में स्थित विराट पुरुष को अविनाशी ब्रह्म के रूप में उपस्थित करके, उसकी उपासना करने की बात कही।
  8. उसके बाद ऋषि ने अग्नि मण्डल में स्थित विराट पुरुष को , जलमण्डल में उपस्थित विराट पुरुष को , दर्पण में प्रतिबिम्बित विराट पुरुष को , प्रतिध्वनि में स्थित ध्वनि को , गतिशील विराट पुरुष के पीछे उठने वाले ध्वन्यात्मक शब्द को , शरीरधारी की छाया को , शरीर में स्थित विराट पुरुष को , प्रज्ञा से युक्त प्राण-स्वरूप आत्मा को , दाहिने नेत्र में स्थित विराट पुरुष को , बाएं नेत्र में स्थित विराट पुरुष को अविनाशी ब्रह्म के रूप में उपस्थित करके , उसकी उपासना करने की बात कही।
  9. परन्तु अजातशत्रु ने क्रमश : सभी को नकारते हुए अग्नि को दूसरों का प्रहार सहन करने वाला 'विषासहि,' जल में स्थित ब्रह्म को नामधारी जीवात्मा, प्रतिबिम्ब को प्रतिरूप, प्रतिध्वनि को गति का अभावयुक्त, ध्वन्यात्मक शब्द को 'प्राणस्वरूप', शरीर की छाया को मृत्यु-रूप, शरीर में स्थित विराट पुरुष को प्रजापति का स्वरूप, प्रज्ञा से युक्त आत्मा को यम का स्वरूप, दाहिने नेत्र में स्थित पुरुष को नाम, अग्नि और ज्योति की आत्मा, बाएं नेत्र में स्थित पुरुष को सत्य, विद्युत और तेज का आत्मा बताया और उसी रूप में उनकी उपासना करने की बात कही।
  10. परन्तु अजातशत्रु ने क्रमश : सभी को नकारते हुए अग्नि को दूसरों का प्रहार सहन करने वाला 'विषासहि,' जल में स्थित ब्रह्म को नामधारी जीवात्मा, प्रतिबिम्ब को प्रतिरूप, प्रतिध्वनि को गति का अभावयुक्त, ध्वन्यात्मक शब्द को 'प्राणस्वरूप', शरीर की छाया को मृत्यु-रूप, शरीर में स्थित विराट पुरुष को प्रजापति का स्वरूप, प्रज्ञा से युक्त आत्मा को यम का स्वरूप, दाहिने नेत्र में स्थित पुरुष को नाम, अग्नि और ज्योति की आत्मा, बाएं नेत्र में स्थित पुरुष को सत्य, विद्युत और तेज का आत्मा बताया और उसी रूप में उनकी उपासना करने की बात कही।


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